Monday 27 April 2020

<<<<< विस्मृतीतल गाव>>>>>


भूतकाळात चाचपडत फिरून,
धुळीने झाकोळलेल्या स्मृतीला एका क्षणात,
आठवून देत मनात विस्फारलेल अन् ,
कधीतरी भूतकाळाच्या विस्मृतीत बुडालेल
कधीच न कळलेल गाव.

अंतरमनाच्या पुसटशा स्मृतीवर,
खिळून राहिलेल् माञ,
कधीच कुण्या बापड्यान,
न रेखाटलेल स्वपनाताच विरलेल गावं,
कधी विक्षिप्त तर कधी गुढ वाटणार गाव.

राहून राहून अदभूत अन् तितकेच हवं हवस वाटणार,
तर कधी स्मशान शांत वाटणार गाव,
कुठेतरी हरवलेले अन् प्रकाशझोतात नसणार गाव,
माञ विस्मृतीत कधीतरी लयाला गेलेलं गाव.

                                                      -सुरेश पुरी 

Friday 17 April 2020

••○○●● कॉम्पिनेटिव्ह एक्झाम दिल से••○○●●

कैसे मै बताऊँ उसे,
बहोत मोहब्बत है तुझसे, 😍😍

कैसे यकीन दिलाएं उसे, 
दिलों जान से चाहते हैं तुम्हे, 🤩🤩

कैसे तेरे इम्तिहान से सफल हो जाऊं, 📖📚👨‍🏫
की बस एक बार तुम भी दिल की बाते मुझसे बयां करे, 📝

और कितना इश्क करूं मैं तुझे, 
बता और कितनी मोहब्बत करूं मै तुझे। 📗✍

                              - @सुरेश पुरी 

Tuesday 14 April 2020

🕺🕺..ठिगळाची पँट ती..🕺🕺

कधी काळची गरीबी ती, 
कलयुगाची मात्र फॅशन ती.

पँटवरची आधीची हेड लाइट ती, 
कलयुगातली मात्र झंकी पंकी पँट ती.

कधी काळची दरिद्री पणाची ओळख ती, 
आज मात्र फॅशन डिझाइनरच्या तिजोरीची चावीच ती.

लहानपणाची मायेची ऊब ती, 
आज ब्रँडेड ठिगळं लावून बी पोरकीच ती.

कधी काळची कमी पणाची ठिगळाची पँट ती, 
आज मात्र सेलिब्रेटिजची ब्रँडेड पँट ती. 
  
                                  - सुरेश पुरी 

✍✍✍...My words My writing...✍✍✍

" कविताओं को लिखने का हमें इतना शौक नहीं,
     
           पर ऐसे ही दिल मानता नहीं। 

           दिल को समझा नहीं सकता,

   और दिल की बातो को छुपा नहीं सकता। "

                                       - सुरेश पुरी 

Monday 13 April 2020

~~~नया तरीका~~~

आजकल ना जाने क्यूँ,
लोग मुझे कहतें है,
किस सोच में पड़ गया है तू।

असल मे हम,
किसी सोच में रहते ही नहीं हम,
ना जाने क्यूँ ऐसा कहतें हैं लोग

अंदाज मेरा वही पुराना है,
जिंदगी की सफ़र मे सिख नयी मिलती गयी,
और मै जिने का तरीका बदलता गया इतनाही।

                                   - सुरेश पुरी 

"कसला हा अहंकार"

कसला गर्व चढलाय माणसांना - पैसा अन् संपत्तीचा  दोन क्षणाच्या गर्वापोटी माणुस - विसरत चाललाय रक्ताच्या नात्यांना.  नेमका कसला गंज चढलाय - अहं...